Tuesday, May 27, 2025

भगवद् गीता श्लोक 2.13 का अर्थ, व्याख्या और जीवन में शिक्षा | Bhagavad Gita Chapter 2 Verse 13 Meaning & Life Lessons देहिनोऽस्मिन्यथा देहे कौमारं यौवनं जरा । तथा देहान्तरप्राप्तिर्धीरस्तत्र न मुह्यति ॥

भगवद् गीता श्लोक 2.13 का अर्थ, व्याख्या और जीवन में शिक्षा | Bhagavad Gita Chapter 2 Verse 13 Meaning & Life Lessons


📜 संस्कृत श्लोक

देहिनोऽस्मिन्यथा देहे कौमारं यौवनं जरा ।
तथा देहान्तरप्राप्तिर्धीरस्तत्र न मुह्यति ॥


🪷 Sanskrit Transliteration

Dehino'smin yathā dehe kaumāraṁ yauvanaṁ jarā ।
Tathā dehāntara-prāptir dhīras tatra na muhyati ॥


🧠 हिन्दी में विस्तृत व्याख्या (Hindi Explanation)

इस श्लोक में भगवान श्रीकृष्ण आत्मा की स्थायित्वता और शरीर के परिवर्तनशील स्वरूप की गूढ़ व्याख्या करते हैं। वे अर्जुन से कहते हैं:

"जैसे इस देह में जीव (आत्मा) बाल्यावस्था (कौमार्य), यौवन और फिर वृद्धावस्था को प्राप्त करता है, वैसे ही मृत्यु के बाद वह एक नए शरीर को प्राप्त करता है। धीर पुरुष (ज्ञानी) इस परिवर्तन से मोहित नहीं होता।"

यह श्लोक जीवन और मृत्यु के चक्र को सहजता से समझाता है। आत्मा एक शरीर से दूसरे शरीर में वैसे ही जाती है जैसे शरीर में अवस्थाओं का परिवर्तन होता है — यह स्वाभाविक है।


🌍 English Explanation in Depth

Lord Krishna explains to Arjuna that:

“Just as the embodied soul continuously passes from childhood to youth to old age within this body, similarly, the soul passes into another body at death. The wise are not deluded by this.”

This is a fundamental principle of reincarnation (punarjanma) in Hindu philosophy. It establishes the truth that the soul (Atman) is unchanging and merely inhabits various bodies during its eternal journey.


🔍 Philosophical Significance

  • शरीर परिवर्तनशील है: शरीर बदलता है — बाल्यावस्था, यौवन और वृद्धावस्था इसी परिवर्तन के प्रमाण हैं।

  • आत्मा स्थिर है: आत्मा इन परिवर्तनों से अप्रभावित रहती है।

  • मृत्यु जीवन का अंत नहीं: यह आत्मा के लिए केवल "देहांतरण" (body change) है।

  • धैर्य और विवेक: ज्ञानी व्यक्ति शरीर के इन स्वाभाविक परिवर्तनों से भ्रमित नहीं होता।


🌱 Life Lessons & Practical Applications

  1. Change is Inevitable: जैसे शरीर में आयु बदलती है, वैसे ही जीवन में परिवर्तन को सहज स्वीकारना चाहिए।

  2. Embrace Aging Gracefully: वृद्धावस्था कोई अभिशाप नहीं है, यह आत्मा की यात्रा का एक चरण है।

  3. Don’t Fear Death: मृत्यु एक संक्रमण (transition) है, अंत नहीं।

  4. Live Mindfully: आत्मा के स्थायित्व को समझकर हम अधिक शांति और निडरता से जीवन जी सकते हैं।

  5. Cultivate Detachment: यह जानकर कि हम शरीर नहीं आत्मा हैं, भौतिक मोह कम होता है।


🧘‍♂️ Modern-Day Relevance

आज के समय में, जब लोग aging, body image, और death जैसी बातों से ग्रसित हैं, यह श्लोक एक मानसिक और आध्यात्मिक समाधान प्रदान करता है। यह बताता है कि हम केवल शरीर नहीं हैं — हम वह चेतना हैं जो जीवन के प्रत्येक चरण से होकर गुजरती है। आत्मा का यह दृष्टिकोण तनाव, डर और असुरक्षा को दूर करता है।


🕉️ धार्मिक दृष्टिकोण (Spiritual Angle)

यह श्लोक हिंदू धर्म की पुनर्जन्म की अवधारणा का मूल है। आत्मा एक यात्रा पर है — यह न कभी जन्म लेती है और न मरती है। शरीरों को बदलना आत्मा के लिए उतना ही स्वाभाविक है जितना कपड़े बदलना। इस दृष्टिकोण से मृत्यु भी जीवन का हिस्सा बन जाती है — न कि उसका अंत।


📝 निष्कर्ष (Conclusion in Hindi)

इस श्लोक से हमें यह गहन शिक्षा मिलती है कि आत्मा अविनाशी और शाश्वत है। शरीर का परिवर्तन जीवन का स्वाभाविक क्रम है — जैसे बचपन से जवानी और फिर वृद्धावस्था आती है, वैसे ही मृत्यु के बाद एक नया शरीर आत्मा को प्राप्त होता है। जो व्यक्ति इस सत्य को समझ लेता है, वह कभी मोह, भय और शोक से भ्रमित नहीं होता। यही वास्तविक ज्ञान है, जो आत्मा को शांति और मुक्ति की ओर ले जाता है।

No comments:

Post a Comment

"The Mystery of God’s Birth: How Krishna Appears in the World Without Being Born!"

Sanskrit Shloka अजोऽपि सन्नव्ययात्मा भूतानामीश्वरोऽपि सन् । प्रकृतिं स्वामधिष्ठाय सम्भवाम्यात्ममायया ॥ IAST Transliteration ajo’pi sa...