भगवद् गीता श्लोक 2.15 – जो समदुखसुख है वही अमरत्व का अधिकारी बनता है | Gita Chapter 2 Verse 15 Meaning & Life Lesson
📜 संस्कृत श्लोक
यं हि न व्यथयन्त्येते पुरुषं पुरुषर्षभ ।
समदुःखसुखं धीरं सोऽमृतत्वाय कल्पते ॥
🔤 Sanskrit Transliteration
Yaṁ hi na vyathayantyete puruṣaṁ puruṣarṣabha,
Sama-duḥkha-sukhaṁ dhīraṁ so ’mṛtatvāya kalpate.
🪷 हिन्दी में अर्थ और व्याख्या (Hindi Meaning & Explanation)
भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं:
"हे पुरुषों में श्रेष्ठ (अर्जुन)! जो व्यक्ति सुख-दुख आदि द्वंद्वों से व्यथित नहीं होता, जो समभाव रखता है, वह धीर पुरुष अमरत्व (मोक्ष) का अधिकारी बनता है।"
इस श्लोक में भगवान कृष्ण कहते हैं कि सच्चा ज्ञान वही है, जो इंसान को भावनात्मक उतार-चढ़ाव से ऊपर उठा देता है। सुख आने पर हर्षित और दुःख आने पर दुखी होना एक सामान्य मनुष्य की प्रतिक्रिया है। लेकिन "धीर", अर्थात् स्थिर-बुद्धि वाला व्यक्ति, इन दोनों को समान भाव से देखता है।
✨ इस श्लोक के प्रमुख बिंदु:
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"न व्यथयन्ति": जो विचलित नहीं होता।
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"समदुःखसुखं": जो सुख-दुख में समान रहता है।
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"धीरं": संयमी और स्थिर बुद्धि वाला।
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"अमृतत्वाय कल्पते": वह अमरत्व (मोक्ष) के योग्य बनता है।
🌍 English Explanation of Gita 2.15
Lord Krishna tells Arjuna:
“O best among men! The person who is not disturbed by pleasure and pain and remains steady in both becomes eligible for immortality.”
In this verse, emotional stability is described as a key quality for spiritual realization. The person who doesn’t lose balance in either joy or sorrow is considered wise (dhīra) and prepared for the eternal truth (amṛtatva or liberation).
This is a timeless message: Liberation (moksha) is not achieved by rituals alone, but by mastering the mind and emotions.
🧘♂️ Philosophical & Spiritual Significance
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Equanimity (समत्व): आध्यात्मिक विकास की पहली शर्त है भावनात्मक संतुलन।
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Mental Strength (धैर्य): जो मन से मजबूत है, वही संसार के आकर्षण और दुखों से पार पा सकता है।
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Path to Liberation: सुख और दुःख दोनों को एक समान समझने वाला व्यक्ति ही मोक्ष का अधिकारी बनता है।
🌱 Life Lessons from Bhagavad Gita 2.15
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Embrace Stoicism: किसी भी परिस्थिति में स्थिर रहना आत्मविकास की पहचान है।
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Train the Mind: हमें अपने मन को इस प्रकार प्रशिक्षित करना चाहिए कि वह किसी भी भावनात्मक तूफान में स्थिर रह सके।
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Avoid Emotional Extremes: अति हर्ष या अति विषाद — दोनों ही आत्मा की प्रकृति के विपरीत हैं।
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Balance is Freedom: जब हम सुख-दुख से ऊपर उठ जाते हैं, तभी हम सच्चे अर्थों में स्वतंत्र होते हैं।
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True Spiritual Practice: ध्यान, जप, पूजा से ज्यादा जरूरी है — भावनात्मक समता।
🔄 Relevance in Modern Life
आज के समय में, लोग छोटी-छोटी असफलताओं पर तनाव में आ जाते हैं और थोड़ी सी प्रशंसा में अहंकार से भर जाते हैं। यह श्लोक सिखाता है कि जो व्यक्ति आलोचना और प्रशंसा — दोनों में स्थिर रहता है, वही वास्तव में मजबूत है।
Emotional intelligence और spiritual growth दोनों का मूल इस श्लोक में छिपा है।
🧠 Quotes Inspired by Gita 2.15
“The strong man is not he who never feels sorrow, but he who never lets it shake his soul.”
— Gita Wisdom
“Equanimity is the essence of immortality.”
— Bhagavad Gita 2.15 Reflection
🧾 निष्कर्ष (Conclusion in Hindi)
इस श्लोक से यह स्पष्ट होता है कि सच्ची आध्यात्मिक प्रगति केवल कर्मकांडों से नहीं होती, बल्कि मानसिक और भावनात्मक संतुलन से होती है। जो व्यक्ति सुख और दुःख दोनों में समान रहकर जीवन व्यतीत करता है, वह अमरत्व (मोक्ष) का अधिकारी बनता है। ऐसे व्यक्ति को संसार बांध नहीं सकता, क्योंकि वह संसार की द्वंद्वात्मकता से ऊपर उठ चुका होता है। यह श्लोक आत्म-विकास के मार्ग पर एक दीपक के समान है।
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