भगवद गीता श्लोक 2.16 – सत्य और असत्य का अंतर क्या है? | Gita 2.16 Meaning, Explanation & Life Lesson in Hindi & English
📜 संस्कृत श्लोक
नासतो विद्यते भावो नाभावो विद्यते सतः ।
उभयोरपि दृष्टोऽन्तस्त्वनयोस्तत्त्वदर्शिभिः ॥
🔤 Sanskrit Transliteration
Nā́sato vidyate bhāvo nābhāvo vidyate sataḥ
Ubhayor api dṛṣṭo ’ntas tv anayos tattva-darśibhiḥ
🪷 हिंदी में अर्थ और व्याख्या (Hindi Meaning & Explanation)
भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं:
"असत् (जो नहीं है) का कोई अस्तित्व नहीं होता, और सत् (जो सच्चा है) का कभी अभाव नहीं होता। इस दोनों के अंत को तत्वदर्शी ऋषियों ने भली-भांति देखा है।"
इस श्लोक में दो गूढ़ शब्द हैं – "सत्" और "असत्"।
-
सत् = जो सदा रहता है (शाश्वत, आत्मा)
-
असत् = जो अस्थायी है (शरीर, भौतिक संसार)
भगवान श्रीकृष्ण यह स्पष्ट करते हैं कि शरीर, पदार्थ, संबंध और स्थिति अस्थायी हैं। ये सब परिवर्तनशील हैं और अंततः समाप्त हो जाते हैं। लेकिन जो "सत्य", यानी आत्मा, चेतना, ब्रह्म है – वह न तो कभी नष्ट होता है और न ही कभी उत्पन्न होता है।
जो तत्वदर्शी (सच्चे ज्ञानी) होते हैं, वे यह भेद अच्छी तरह जानते हैं।
🌍 English Explanation of Gita 2.16
Lord Krishna says:
“There is no existence for the unreal, and the real never ceases to be. The seers who understand the truth have concluded the same about both.”
Here, Krishna distinguishes between:
-
Sat (the real) – that which exists permanently, i.e., the soul.
-
Asat (the unreal) – that which is temporary, i.e., the body, material things, and emotions.
The essence of this verse lies in understanding the impermanence of the material world and the eternal nature of the soul. True wisdom lies in recognizing this eternal truth.
✨ Philosophical Significance
-
माया और आत्मा का भेद: इस संसार की हर वस्तु माया है, अस्थायी है। आत्मा ही शाश्वत है।
-
ज्ञान की कसौटी: जो "सत" और "असत" में भेद जानता है, वही तत्वदर्शी है।
-
अस्थिरता से स्थिरता की ओर: भटकती चेतना को आत्मा में स्थिर करने का मार्ग यही ज्ञान है।
🌱 Life Lessons from Gita 2.16
-
Don’t Get Attached to the Unreal: शरीर, पद, पैसा – ये सब अस्थायी हैं। इनसे मोह करना दुख का कारण है।
-
Seek the Eternal: सच्चे सुख की प्राप्ति आत्मा को जानने से होती है, बाहरी चीजों से नहीं।
-
Practice Detachment: जो नष्ट हो जाने वाला है, उसमें अपना सर्वस्व मत लगाओ।
-
Focus on the Soul: आत्मा अजर-अमर है, वही हमारी असली पहचान है।
-
Grow Spiritually: रोज़ थोड़ा ध्यान, आत्म-चिंतन और गीता का अध्ययन जीवन को दिशा देता है।
🔄 Relevance in Modern Life
आज के समय में व्यक्ति अधिकतर असत् के पीछे भागता है – जैसे शोहरत, सोशल मीडिया की मान्यता, बाहरी सुंदरता और भौतिक वस्तुएं। ये सब चीजें क्षणिक हैं और कभी भी समाप्त हो सकती हैं।
इस श्लोक की सीख है कि असली सफलता और शांति आत्मज्ञान में है, न कि बाहरी उपलब्धियों में।
🧠 Inspiring Quote Based on Gita 2.16
“The permanent cannot be destroyed; the impermanent never truly exists.”
— Bhagavad Gita Essence
“Truth is not what changes with time – truth is what remains when everything else fades.”
— Inspired by Krishna
🧾 निष्कर्ष (Conclusion in Hindi)
भगवद गीता का यह श्लोक हमें यह सिखाता है कि हम जो भी देख, छू, भोग सकते हैं, वह सब असत् है – यानी अस्थायी। केवल आत्मा, ब्रह्म और चेतना ही सत् हैं – शाश्वत और अमर। जो व्यक्ति इस भेद को जान लेता है, वही तत्वदर्शी कहलाता है।
इस श्लोक का सार यही है कि हमें अस्थायी चीजों में नहीं उलझना चाहिए, बल्कि आत्मा की पहचान और अनुभव की दिशा में बढ़ना चाहिए। यही शांति, स्थिरता और मोक्ष का मार्ग है।
No comments:
Post a Comment