भगवद गीता श्लोक 2.19 अर्थ, व्याख्या और जीवन शिक्षा | Gita 2.19 Explained in Hindi & English
📜 संस्कृत श्लोक
य एनं वेत्ति हन्तारं यश्चैनं मन्यते हतम् ।
उभौ तौ न विजानीतो नायं हन्ति न हन्यते ॥
🔤 Transliteration
Ya enaṁ vetti hantāraṁ yaś cainaṁ manyate hatam
Ubhau tau na vijānīto nāyaṁ hanti na hanyate
🪷 हिंदी अर्थ व व्याख्या (Meaning & Explanation in Hindi)
श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं:
"जो व्यक्ति आत्मा को मारने वाला समझता है और जो इसे मारा गया मानता है—दोनों ही अज्ञानी हैं। आत्मा न तो किसी को मारती है, न ही मारी जा सकती है।"
इस श्लोक में श्रीकृष्ण आत्मा की अमरता और अक्रियता (actionless nature) की बात करते हैं। वह यह स्पष्ट करते हैं कि:
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आत्मा हत्या नहीं कर सकती क्योंकि वह क्रिया-रहित है।
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आत्मा मरी नहीं जाती, क्योंकि वह अविनाशी है।
यह अर्जुन के मन से युद्ध में अपने संबंधियों को मारने के डर को दूर करने के लिए कहा गया है।
🌍 English Explanation of Gita 2.19
Lord Krishna tells Arjuna:
"He who thinks the soul is the slayer, and he who thinks the soul is slain—both are ignorant. The soul neither kills nor can be killed."
This profound statement corrects the misconception that death is the end. It emphasizes that:
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The soul is actionless and changeless.
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Killing and dying are only experiences of the body, not of the eternal self.
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True knowledge lies in understanding this spiritual truth.
✨ Philosophical Insights
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Illusion of Death: Death is only of the body, not of the self.
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Misidentification: Believing that "I kill" or "I am killed" stems from identification with the body.
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Spiritual Clarity: Those who know the soul’s true nature do not grieve or fear death.
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Beyond Duality: The soul exists beyond all actions, emotions, and changes.
🌱 Life Lessons from Gita 2.19
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आत्मा को कोई नहीं मार सकता, न ही यह मारी जा सकती है — इसलिए मृत्यु का भय व्यर्थ है।
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अज्ञान ही है जब हम अपने आपको शरीर मानते हैं — सच्चा ज्ञान आत्मा की पहचान में है।
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कर्तव्य का पालन भावनात्मक मोह से ऊपर उठकर करना चाहिए — क्योंकि आत्मा अजर, अमर और अक्रिय है।
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दुख और भय सिर्फ माया के प्रभाव हैं, जो आत्मा को नहीं छू सकते।
🔄 Modern-Day Relevance
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जब कोई प्रियजन इस दुनिया से चला जाता है, तब यह श्लोक सिखाता है कि आत्मा नष्ट नहीं होती — बस शरीर बदलता है।
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जब युद्ध या संघर्ष का समय हो, यह श्लोक कर्तव्य पर अडिग रहने की प्रेरणा देता है।
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यह श्लोक मानसिक शांति और स्थिरता प्रदान करता है, विशेषकर तब जब जीवन में अनिश्चितता हो।
🧠 Inspiring Thought from Gita 2.19
"The soul is untouched by killing or being killed—it is eternal, beyond physical action."
"जो आत्मा को मारने या मरने योग्य मानते हैं, वे अज्ञानी हैं — आत्मा न कभी मरती है, न मारती है।"
🧾 निष्कर्ष (Conclusion in Hindi)
इस श्लोक में श्रीकृष्ण यह गूढ़ सत्य प्रकट करते हैं कि आत्मा न कभी किसी की हत्या करती है, न ही मारी जाती है। यह शरीर तो एक वस्त्र की तरह है, जिसे आत्मा समय के अनुसार बदलती है।
इसलिए अर्जुन को — और हम सबको — भय, मोह और मृत्यु की चिंता को त्यागकर, आत्मा के शुद्ध और अमर स्वरूप को समझते हुए अपने कर्तव्य का पालन करना चाहिए। यही सच्ची आत्मज्ञानी दृष्टि है।
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